नई दिल्ली: Ganesh Festival: किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन किया जाता है. संकट दूर करने की वजह से इन्हें विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है. हाल ही में गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. आज घर-घर में बप्पा की पूजा अराधना की जा रही है. भगवान श्री गणेश को ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना जाता है. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन किया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि श्री गणेश के पूजन में तुलसी का इस्तेमाल करने से भगवान गणपति महाराज नाराज हो जाते हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कथा, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. क्या आपको पता है कि गौरी के गणेश ब्रह्मचारी रहना चाहते थे, लेकिन उन्हें दो विवाह करने पड़े. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे बड़ी रोचक कहानी है.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय श्री गणेश महाराज गंगा किनारे तपस्या करने में लीन थे. उस समय धर्मात्मज कन्या तुलसी भी गंगा तट पर अपने विवाह हेतु तीर्थयात्रा करती हुईं, वहां पहुंचीं थीं. इस दौरान तपस्या में विलीन रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे, शरीर पर चंदन का लेपन और अनेक रत्न जड़ित हार में मनमोहक दिख रहे गणपति महाराज पर तुलसी जी की नजर पड़ी. श्री गणेश की मनमोहक छवि देख तुलसी जी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया. ऐसे में तुलसी जी श्री गणेश को तपस्या से उठा दिया और विवाह प्रस्ताव दिया. तपस्या भंग होने से गौरी गणेश क्रोधित हो उठे और तुलसी जी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. श्री गणेश द्वारा ठुकराये प्रस्ताव से क्रोधित होकर तुलसी जी ने उन्हें श्राप दिया. तुलसी जी ने गणपति महाराज को दो विवाह होने का श्राप दिया. ऐसे में गौरी गजानन ने भी तुलसी जी को श्राप दे दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा. इस श्राप को सुनते ही तुलसी श्री गणेश से माफी मांगने लगीं. कथा के अनुसार, गणपति महाराज ने तुलसी जी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी.
तुलसी से जुड़ी कुछ और मान्यताएं
मान्यता है कि तुलसी के पौधे को घर के अंदर नहीं लगाना चाहिये. इसके पीछे भी एक कथा है, जिसके अनुसार तुलसी जी के पति के मृत्यु के बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने तुलसी जी को अपनी प्रिय सखी राधा की तरह माना था. तुलसी ने उनसे कहा कि वे उनके घर जाना चाहती हैं, लेकिन श्री हरि ने मना करते हुए कहा, मेरा घर लक्ष्मी के लिए है, लेकिन मेरा दिल तुम्हारे लिए है. श्री हरि की इस बात पर तुलसी जी ने कहा कि घर के अंदर ना सही बाहर तो उन्हें स्थान मिल ही सकता है, जिसे विष्णु भगवान ने मान लिया. कहा जाता है कि तब से ही तुलसी जी का पौधा घर और मंदिरों के बाहर लगाया जाता है.